दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 की सरगर्मी चरम पर है। आम आदमी पार्टी (AAP), भारतीय जनता पार्टी (BJP) और कांग्रेस (Congress) के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिल रहा है। लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा कांग्रेस के प्रदर्शन को लेकर हो रही है। पिछले दो विधानसभा चुनावों (2015 और 2020) में कांग्रेस का खाता तक नहीं खुला, जिससे पार्टी के लिए यह चुनाव ‘सियासी अस्तित्व की लड़ाई’ बन चुका है। अब सवाल उठता है कि क्या कांग्रेस इस बार वापसी करेगी या फिर एक बार फिर जीरो पर सिमट जाएगी? एग्जिट पोल सर्वे और जनता के मूड को देखते हुए इसका संकेत जल्द मिल सकता है।
दिल्ली में कांग्रेस का गिरता ग्राफ: 15 साल सत्ता में, फिर जीरो पर क्यों पहुंची?
दिल्ली में कांग्रेस की राजनीति की शुरुआत 90 के दशक से मजबूत रही। 1998 में शीला दीक्षित के नेतृत्व में कांग्रेस सत्ता में आई और लगातार 15 साल (1998-2013) तक दिल्ली पर शासन किया। शीला दीक्षित को विकासशील योजनाओं, मेट्रो विस्तार, सड़क निर्माण और बिजली-पानी सुधारों के लिए सराहा गया। लेकिन 2013 में आम आदमी पार्टी (AAP) के उदय के साथ ही कांग्रेस का पतन शुरू हो गया।
2013: कांग्रेस से AAP की ओर झुका जनाधार
2013 के चुनावों में कांग्रेस को महज 8 सीटें मिलीं, जबकि अरविंद केजरीवाल की AAP ने 28 सीटों पर जीत दर्ज की। भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनी लेकिन बहुमत नहीं मिला। कांग्रेस ने AAP को समर्थन दिया और अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री बने।
2015: AAP की सुनामी, कांग्रेस साफ
AAP ने 2015 में रिकॉर्ड तोड़ प्रदर्शन किया और 70 में से 67 सीटें जीत लीं। कांग्रेस 0 सीटों पर सिमट गई और दिल्ली की राजनीति से लगभग गायब हो गई।
2020: फिर खाली हाथ कांग्रेस
2020 में भी AAP ने 62 सीटें जीतीं, भाजपा को 8 सीटें मिलीं और कांग्रेस का खाता नहीं खुला। यानी लगातार दो चुनावों में कांग्रेस जीरो पर रही।
कांग्रेस के लिए 2025 चुनाव क्यों अहम?
कांग्रेस के अस्तित्व की लड़ाई:
दिल्ली में लगातार दो चुनावों में शून्य रहना कांग्रेस के लिए बड़ा झटका था। अगर 2025 में भी पार्टी को कोई सीट नहीं मिलती है, तो इसका सीधा असर 2029 के लोकसभा चुनावों पर पड़ सकता है।
राहुल-प्रियंका का प्रचार:
इस बार कांग्रेस ने राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा के नेतृत्व में जोरदार प्रचार किया। पार्टी ने विभिन्न रैलियां कीं और जनता को अपने पक्ष में लाने की कोशिश की।
AAP और भाजपा के बीच ध्रुवीकरण:
दिल्ली की राजनीति अब AAP और भाजपा के बीच सिमट गई है। कांग्रेस को अगर वापसी करनी है, तो उसे इस ध्रुवीकरण को तोड़ना होगा।
युवा और मुस्लिम वोट बैंक:
दिल्ली में मुस्लिम और युवा मतदाता पहले कांग्रेस के समर्थन में थे, लेकिन AAP ने इन वोटर्स को अपनी ओर कर लिया। कांग्रेस की कोशिश इन्हें दोबारा अपनी तरफ खींचने की है।
क्या कह रहे हैं एग्जिट पोल और सर्वे?
चुनाव खत्म होने के बाद एग्जिट पोल सर्वे जारी किए जाएंगे, जिनसे पता चलेगा कि कांग्रेस की स्थिति कैसी रही।
पिछले एग्जिट पोल क्या कहते थे?
2015 में: कांग्रेस को 0 सीटों का अनुमान था, और पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली।
2020 में: कांग्रेस के लिए 0-2 सीटों का अनुमान था, लेकिन उसे फिर से 0 सीटें ही मिलीं।
2025 के लिए संभावित अनुमान?
कुछ सर्वे में कांग्रेस को 0-3 सीटों तक की संभावना जताई जा रही है।
कुछ विश्लेषकों का मानना है कि अगर मुस्लिम वोट कांग्रेस की तरफ लौटते हैं, तो पार्टी 5-7 सीटें जीत सकती है।
भाजपा के खिलाफ वोटों का बंटवारा कांग्रेस के लिए फायदेमंद हो सकता है।
कांग्रेस को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है?
मजबूत नेतृत्व की कमी:
शीला दीक्षित के निधन के बाद कांग्रेस के पास कोई बड़ा चेहरा नहीं है। दिल्ली में अब तक पार्टी एक करिश्माई नेता खड़ा नहीं कर पाई है।
AAP की लोकप्रियता:
अरविंद केजरीवाल की पार्टी अभी भी जनता के बीच मजबूत है। AAP की योजनाएं (बिजली-पानी सब्सिडी, स्कूलों में सुधार) कांग्रेस के पुराने वोटर्स को भी अपनी ओर खींच रही हैं।
भाजपा की रणनीति:
भाजपा ने इस बार आक्रामक प्रचार किया और कांग्रेस को पूरी तरह साइडलाइन करने की कोशिश की।
गुटबाजी और कमजोर संगठन:
कांग्रेस के अंदरूनी झगड़े और कमजोर ग्राउंड नेटवर्क भी उसकी हार की बड़ी वजह बने हैं।
क्या कांग्रेस को फायदा हो सकता है?
भाजपा और AAP के बीच संघर्ष:
अगर भाजपा और AAP में सीधी लड़ाई होती है, तो कांग्रेस कुछ सीटें जीत सकती है।
मुस्लिम और पारंपरिक वोटर्स की वापसी:
अगर कांग्रेस अपना कोर वोट बैंक (मुस्लिम, दलित, पारंपरिक कांग्रेस समर्थक) वापस ला पाती है, तो यह उसकी जीत की संभावना बढ़ा सकता है।
राहुल-प्रियंका की मेहनत:
इस बार राहुल और प्रियंका गांधी ने दिल्ली में ज्यादा प्रचार किया। अगर इसका असर दिखा, तो कांग्रेस को फायदा हो सकता है।
8 फरवरी को नतीजे: क्या कांग्रेस जीरो से आगे बढ़ेगी?
अब सबकी नजर 8 फरवरी पर है, जब मतगणना होगी और दिल्ली का फैसला सामने आएगा।
अगर कांग्रेस जीरो पर रहती है, तो यह उसके लिए बहुत बड़ा झटका होगा और पार्टी की रणनीति पर सवाल उठेंगे।
अगर कांग्रेस 2-3 सीटें भी जीत लेती है, तो यह उसके लिए एक संकेत होगा कि वह वापसी की राह पर है।
अगर कांग्रेस को 5-7 सीटें मिलती हैं, तो यह एक नई शुरुआत हो सकती है और 2029 के लोकसभा चुनावों से पहले कांग्रेस के लिए सकारात्मक संकेत होगा।
कांग्रेस के लिए करो या मरो की स्थिति
दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 कांग्रेस के लिए करो या मरो की स्थिति है। अगर पार्टी इस बार भी शून्य पर रहती है, तो उसकी सियासी जमीन और कमजोर हो जाएगी। लेकिन अगर वह कुछ सीटें जीतने में कामयाब होती है, तो यह उसके लिए एक नई उम्मीद की किरण होगी।
अब देखना यह है कि क्या दिल्ली की जनता कांग्रेस को मौका देगी या फिर वह AAP और भाजपा के मुकाबले बाहर ही रहेगी? इसका जवाब 8 फरवरी को मिलेगा!